Welcome to Souq Ecommerce Store !
घर बनाते समय दिशाओं का महत्व, घर के विभिन्न हिस्सों के लिए दिशा-निर्देश

घर बनाते समय दिशाओं का महत्व, घर के विभिन्न हिस्सों के लिए दिशा-निर्देश

(0 customer review)

vastu


घर बनाते समय दिशाओं का महत्व

वास्तुशास्त्र में दिशाओं का बहुत अधिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक दिशा एक विशिष्ट ऊर्जा और तत्व से जुड़ी होती है, और घर के विभिन्न हिस्सों को सही दिशा में बनाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित होता है, जिससे घर में रहने वालों को सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य प्राप्त होता है।

आठ मुख्य दिशाएँ और उनका महत्व:

  1. पूर्व (Purva - East):

    • देवता: सूर्य देव
    • तत्व: अग्नि (प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत)
    • महत्व: यह दिशा नए विचारों, शुरुआतों, और आध्यात्मिक विकास से जुड़ी है। पूर्व दिशा को खुला और हवादार रखना चाहिए ताकि सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश कर सके।
    • शुभ स्थान: मुख्य द्वार, लिविंग रूम, बच्चों का कमरा, बालकनी।
  2. पश्चिम (Pashchim - West):

    • देवता: वरुण देव
    • तत्व: जल (स्थिरता और तृप्ति का प्रतीक)
    • महत्व: यह दिशा स्थिरता, लाभ और व्यवसाय से जुड़ी है। पश्चिम दिशा शयनकक्ष और अध्ययन कक्ष के लिए अच्छी मानी जाती है।
    • शुभ स्थान: शयनकक्ष, अध्ययन कक्ष, भोजन कक्ष।
  3. उत्तर (Uttar - North):

    • देवता: कुबेर देव (धन के देवता)
    • तत्व: जल (समृद्धि और अवसर का प्रतीक)
    • महत्व: यह दिशा धन, अवसर और विकास से जुड़ी है। उत्तर दिशा को हमेशा साफ और व्यवस्थित रखना चाहिए ताकि धन का आगमन बना रहे।
    • शुभ स्थान: मुख्य द्वार, लिविंग रूम, पूजा कक्ष, पानी से संबंधित स्थान (जैसे भूमिगत पानी का टैंक)।
  4. दक्षिण (Dakshin - South):

    • देवता: यमराज (मृत्यु और न्याय के देवता)
    • तत्व: पृथ्वी (स्थिरता और शक्ति का प्रतीक)
    • महत्व: यह दिशा स्थिरता, आराम और विश्राम से जुड़ी है। इसे भारी रखना चाहिए। दक्षिण दिशा शयनकक्ष और सीढ़ियों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
    • शुभ स्थान: शयनकक्ष (घर के मुखिया के लिए), सीढ़ियाँ, भारी सामान रखने का स्थान।
  5. उत्तर-पूर्व (Uttar-Purva - Northeast):

    • देवता: ईशान (शिव का रूप)
    • तत्व: जल (ज्ञान और आध्यात्मिकता का प्रतीक)
    • महत्व: यह दिशा सबसे पवित्र और शुभ मानी जाती है। यह ज्ञान, आध्यात्मिकता और स्वास्थ्य से जुड़ी है। इस दिशा को हमेशा साफ, हल्का और खुला रखना चाहिए।
    • शुभ स्थान: पूजा कक्ष, ध्यान कक्ष, बच्चों का कमरा, पानी से संबंधित स्थान। यहाँ शौचालय या भारी निर्माण नहीं होना चाहिए।
  6. उत्तर-पश्चिम (Uttar-Pashchim - Northwest):

    • देवता: वायु देव
    • तत्व: वायु (परिवर्तन और गति का प्रतीक)
    • महत्व: यह दिशा परिवर्तन, यात्रा और सामाजिक संबंधों से जुड़ी है। अतिथि कक्ष और लड़कियों के कमरे के लिए यह दिशा अच्छी मानी जाती है।
    • शुभ स्थान: अतिथि कक्ष, लड़कियों का कमरा, अनाज भंडारण।
  7. दक्षिण-पूर्व (Dakshin-Purva - Southeast):

    • देवता: अग्नि देव
    • तत्व: अग्नि (ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक)
    • महत्व: यह दिशा ऊर्जा, शक्ति और स्वास्थ्य से जुड़ी है। रसोईघर के लिए यह सबसे अच्छी दिशा मानी जाती है।
    • शुभ स्थान: रसोईघर, बिजली के उपकरण रखने का स्थान। यहाँ पानी से संबंधित चीजें नहीं होनी चाहिए।
  8. दक्षिण-पश्चिम (Dakshin-Pashchim - Southwest):

    • देवता: नैऋत्य (राक्षस)
    • तत्व: पृथ्वी (स्थिरता और नियंत्रण का प्रतीक)
    • महत्व: यह दिशा स्थिरता, कौशल और पितरों से जुड़ी है। यह घर के मुखिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण कोना माना जाता है और इसे भारी रखना चाहिए।
    • शुभ स्थान: घर के मुखिया का शयनकक्ष, भारी सामान रखने का स्थान। यहाँ खुला स्थान या पानी से संबंधित चीजें नहीं होनी चाहिए।

घर के विभिन्न हिस्सों के लिए दिशा-निर्देश:

  • मुख्य द्वार (Mukhya Dwar): उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना शुभ माना जाता है।
  • रसोईघर (Rasoi Ghar): दक्षिण-पूर्व (अग्नि कोण) में होना सबसे अच्छा है। यदि यह संभव न हो तो उत्तर-पश्चिम भी ठीक है।
  • शयनकक्ष (Shayan Kaksh): दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) घर के मुखिया के लिए सबसे अच्छा है। अन्य शयनकक्ष पश्चिम या दक्षिण दिशा में हो सकते हैं। बच्चों का कमरा उत्तर-पश्चिम या पूर्व में हो सकता है।
  • पूजा कक्ष (Puja Kaksh): उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में होना सबसे शुभ माना जाता है। उत्तर या पूर्व दिशा भी अच्छी है।
  • लिविंग रूम (Living Room): पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
  • अध्ययन कक्ष (Adhyayan Kaksh): उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशा में हो सकता है।
  • शौचालय (Shauchalay): उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व दिशा में बनाया जा सकता है, लेकिन उत्तर-पूर्व और ब्रह्मस्थान में कभी नहीं होना चाहिए।
  • सीढ़ियाँ (Seedhiyan): दक्षिण या पश्चिम दिशा में बनाई जा सकती हैं। उत्तर-पूर्व में सीढ़ियाँ अशुभ मानी जाती हैं।
  • पानी की व्यवस्था (Pani ki Vyavastha): भूमिगत पानी का टैंक उत्तर-पूर्व दिशा में होना शुभ है।

ब्रह्मस्थान (Brahmasthan - Centre of the House):

घर का केंद्रीय भाग ब्रह्मस्थान कहलाता है। यह सबसे पवित्र स्थान माना जाता है और इसे हमेशा खुला और साफ रखना चाहिए। यहाँ कोई भारी सामान, दीवार या निर्माण नहीं होना चाहिए।

निष्कर्ष:

घर बनाते समय दिशाओं का सही ज्ञान और उनका पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को सुनिश्चित करता है बल्कि घर में रहने वालों के स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशियों को भी बढ़ाता है। इसलिए, घर का नक्शा बनवाते समय और निर्माण करते समय वास्तु सिद्धांतों के अनुसार दिशाओं का ध्यान रखना चाहिए। यदि आपको कोई संदेह हो तो वास्तु विशेषज्ञ से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है।